Wednesday, March 16, 2011

जम्मू काशमीर और भारत का संविधान



जम्मू काशमीर और भारत का संविधान
दुनिया में भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां के एक प्रदेश में पूरे देश से अलग अपनी सत्ता चलती है यानी कि वहां पूरे देश का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा भी उपेक्षा का शिकार है। वहां राज्य का अपना स्वतंत्र ध्वज है, स्वतंत्र अस्तित्व है। यानी यह भी कहा जा सकता है कि वहां भारत के राष्ट्रीय ध्वज का सरेआम अपमान किया जाता है जो एक प्रकार से पूरे भारत का ही अपमान ही कहा जा सकता है। जम्मू काश्मीर के राजनेता जिस प्रकार का बयान देते हैं उससे ऐसा ही लगता है कि वे अलगाववादी वाली भाषा को ही बढ़ावा देने का आपराधिक कृत्य करने की नीति अपना रहे हैं। अभी तिरंगा यात्रा को लेकर जम्मू काशमीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जिस प्रकार का बयान दिया है वह एक राष्ट्रभक्त तो नहीं दे सकता। इतना ही नहीं आज हमारे राजनेता नित्य प्रति भारत विरोधी बयान देने में ही अपनी शान समझने लगे हैं। वास्तव में होना यह चाहिए कि भारत से बढ़कर कुछ भी नहीं है। हमने काश्मीर के नाम पर बहुत गंवाया है अब देशवासियों को अपनी चेतना जगाना होगा नहीं तो ये राजनेता एक दिन पूरे देश को ही दांव पर लगा देंगे।
जम्मू काश्मीर की समस्या निश्चित रूप से स्वार्थी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की देन है, भारत में वोट बैंक की राजनीति के चलते आज महत्वपूर्ण कार्य भी निर्णयात्मक स्थिति में नहीं पहुंच रहे हैं। आज कोई भी इस ऐतिहासिक तथ्य को झुठला नहीं सकता कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू के गलत निर्णयों की वजह से ही कश्मीर समस्या ने जन्म लिया। जब ब्रिटिश सरकार ने हिन्दुस्तान को आजाद करने के लिए भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 पारित किया। तो उसमें हिन्दुस्तान की उन रियायतों को भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित होने अथवा स्वतंत्र रहने का अधिकार दिया, जिन पर राजा-महाराजाओं का शासन था। परिणामस्वरूप उस समय जम्मू-काशमीर के महाराजा हरिसिंह ने भारत या पाकिस्तान में शामिल होने से इनकार कर दिया और घोषणा की कि वह स्वतंत्र रहकर ही दोनों देशों-पाकिस्तान और हिन्दुस्तान से समझौता करेंगे। 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान बनने की घोषणा की गई और 15 अगस्त,1947 को भारत स्वतंत्र हो गया । पाकिस्तानी शासकों ने तभी से महाराजा हरिसिंह को जम्मू-कश्मीर का विलय पाकिस्तान में करने के लिए बहुत मजबूर किया, लेकिन जब वे इसके लिए तैयार नहीं हुये तो उन्होंने पहले तो जम्मू-कश्मीर की आर्थिक नाकेबंदी की और फिर 22 अक्टूबर 1947 को कबालियों की आड़ में राज्य पर अचानक आक्रमण कर दिया जम्मू-काश्मीर पर पाकिस्तानी हमले के दो दिन बाद ही 24 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर के बिना शर्त भारत में विलय की घोषणा कर दी और भारत से सैनिक सहायता मांगी, चूंकि उस समय भारत की कोई वायुसेना नहीं थी, तत्कालीन नेहरू सरकार द्वारा निजी हवाई सेवाओं के जहाजों से कश्मीर को सेना भेजी गई ऐसा करने में भारतीय सेना को कश्मीर पहुंचनें में 3 दिन लग गए तथा परिणाम यह हुआ कि इन पांच दिनों में पाकिस्तानी फौजों को राज्य में बहुत हद तक तबाही मचाने का अवसर मिल

गया महाराजा हरिसिंह के विलय प्रस्ताव को
स्वीकार कर लेने के बाद 27 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर कानूनी दृष्टि से भारत का अंग बन गया था, लेकिन नेहरू सरकार ने फिर भी यह आश्वासन दे डाला कि शान्ति स्थापना होने पर राज्य के लोंगों की भारत या पाक में मिलने की इच्छा का पता लगाया जाएगा यदि आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो नेहरू सरकार की हिमालय जैसी एक विशाल भूल थी इसके बाद एक गलत निर्णय यह रहा कि कानून की दृष्टि से विलय पूर्ण होने पर भी भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़कर कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों से अलग दर्ज दे दिया महाराजा हरिसिंह को गद्दी से उतारकर शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री और हरिसिह के बेटे कर्ण सिंह को सदरे रियासत बना दिया गया सरदार पटेल ने इसका विरोध करते हुए सुझाव दिया था कि पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए शरणथियों को जम्मू-कश्मीर में बसाया जाए लेकिन शेख अब्दुल्ला इसके लिए तैयार नहीं हुये इसलिये पं. नेहरू ने इसे भी स्वीकार नहीं किया इसे एक विडम्बना ही कहेंगे कि महाराजा हरिसिंह के प्रस्ताव के आघार पर भारत में कश्मीर का विलय पूर्ण होने पर भी संविधान के अनुच्छेद 370 के अन्र्तगत कश्मीर का अन्य राज्यों से भिन्न अस्तित्व हो सकते हैं? दुनिया में भारत पहला देश था, जहॉ यह हुआ जम्मू-कश्मीर का आज तक झण्डा अलग है शेख अब्दुल्ला जब तक सत्ता में रहें, उन्हें प्रधानमंत्री कहा जाता था जबकि अन्य सभी राज्यों में मुख्यमंत्री थे देश के सभी राज्यों में राज्यपाल थे अकेले कश्मीर में सदरे रियासत था इतना ही नहीं भारत के नागरिक बिना वीसा के कश्मीर नहीं जा सकते थे और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय भी वहां नहीं लागू होते थे इन्हीं सब बातों ने दुनिया को यह समझने और मानने का मौका दिया कि कश्मीर भारत से अलग है, पं. नेहरू की एक और बड़ी गलती हुई के वे पाकिस्तान के हमले को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गए, जिसके कारण वह अभी तक अनिर्णीत पड़ा हुआ है।
कश्मीर में हिंसा
भारतीय कश्मीर में चरमपंथी हिंसा दोनों देशों के सहज संबंधों में एक बड़ी बाधा है। वो कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के कई प्रस्तावों में कहा गया है कि कश्मीरियों को ये फैसला करने की आजादी होनी चाहिए कि वो भारत में रहें या फिर पाकिस्तान में मिल जाएं।
भारत का कहना है कि कश्मीर उसका हिस्सा है क्योंकि कश्मीर के महाराजा ने अक्टूबर 1947 में विलय के प्रस्ताव पर दस्तखत किए थे। इस प्रस्ताव में भारत को रक्षा, संचार और विदेशी मामलों में अधिकार दिए गए थे।
1950 में भारत के संविधान में कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया। इसके तहत इसे किसी भी अन्य भारतीय राज्यों के मुकाबले ज्यादा स्वायत्तता दी गई है।
भारत के संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर एक राज्य है और इसमें विधानसभा के चुनाव होते हैं।
भारत का कहना है कि 1972 में हुए शिमला समझौते में दोनो देशों ने कश्मीर का मसला आपसी बातचीत से सुलझाने का फैसला किया

था।
वर्तमान में ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के
राजनेता जम्मू काश्मीर को समस्या ग्रस्त ही
बनाये रखना चाहते हैं। आतंकवादियों के विरोध में ठोस कार्रवाई न करना ही इसके पीछे का कारण माना जा सकता है। जम्मू-कश्मीर की जमीन और जनता का सौदा हो रहा है। आतंकवादी दल व उनके नेताओं की मांग है आजादी। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री ने तो एक बार कह ही दिया था कि आजादी के अलावा कुछ और मांग लो हम दे देंगे, इस बात का क्या अर्थ निकाला जा सकता है। आज पुन: मनमोहन सिंह व सोनिया कश्मीरी अलगाववादियों के सामने घुटने टेककर स्वायत्तता यानी भारत विभाजन की मांग को स्वीकार करते दिखाई रहे हैं। हुर्रियत नेता गिलानी आदि के साथ मुफ्ती, महबूबा व उमर आदि का मन भी आजादी का ही है ऐसा लोगों का मानना है। आज हुरियत नेता खुले रूप में आजादी की बात बोलने लगे हैं।
आज आतंकवादी संगठन 1953 से पूर्व की स्थिति लाने की बात कर रहे हैं इसका मतलब यही है कि भारत के अभिन्न अंग माने जाने वाले जम्मू काश्मीर में ऐसी संबैधानिक प्रणाली बने जिसका प्रधान मंत्री अलग हो, क्या यह कृत्य इस भारत राष्ट्र से अलग होने का नहीं है? देश के संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार 1950 के पश्चात् ही जम्मू-कश्मीर के लोगों को प्राप्त हुए थे। क्या ये मूलभूत अधिकार बरकारार रहेंगे या समाप्त हो जाएंगे। अगर मौलिक अधिकार छिन जाएंगे तो एक गंभीर प्रश्न खड़ा होता है कि राज्य लोकतांत्रिक होगा। अथवा मजहबी राज्य होगा। जम्मू-कश्मीर इस समय 110 लाख जनसंख्या का प्रदेश है जिसमें 42 लाख हिंदू (बौद्ध सिक्ख मिलाकर) हैं तथा 68 लाख मुसलमान हैं। दुनियां में मुस्लिम बहुल राज्य तो मजहबी राज्य ही हैं जैसे पाकिस्तान, बंगलादेश, ईरान, इराक आदि। जम्मू-कश्मीर का व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय में न्याय प्राप्त करने जा सकता है अथवा नहीं, क्योंकि जम्मू-कश्मीर प्रदेश 1953 के पश्चात् 1960 में सर्वोच्च न्यायालय की परिधि में आया है। 1953 के पश्चात् ही जम्मू-कश्मीर मुख्य महालेखाकार की हदबंदी में आया और प्रदेश में धन के व्यय पर केंद्र सरकार का नियंत्रण बना। यह नियंत्रण रहेगा या नहीं। 1952 में देशभर में लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव हुए, परंतु जम्मू-कश्मीर में उस समय लोकसभा चुनाव नहीं हुए। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों ने लोकसभा के लिए पहली बार 1957 में वोट डाला। 1952 में जम्मू-कश्मीर विधान सभा ने लोकसभा के लिए 6 सदस्य नामजद किए थे। क्या 1953 से पूर्व की स्थिति का मतलब है कि जम्मू-कश्मीर की जनता लोकसभा के लिए मतदान नहीं करेगी और देश की संसद में उसकी आवाज का गला घोंट दिया जाएगा, उसे लोकमत अधिकार से वंचित किया जाएगा। देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा की स्थिति क्या होगी। आज भी प्रदेश में दो झंडे हैं जबकि देशभर में आज किसी प्रांत में यह स्थिति नहीं हैं। 1953 तक तो जम्मू-कश्मीर की जनता तिरंगे के सम्मान के लिए प्रजा परिषद् के नेतृत्व में लड़ती रही है। डॉ. मुखर्जी का बलिदान हुआ, क्योंकि उनका नारा था कि

एक देश में दो निशान दो विधान नहीं चलेंगे, और संविधान लूंगा या बलिदान दूंगा। 1952 के पश्चात् तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान प्राप्त हुआ। क्या तिरंगा झंडा प्रदेश में नहीं रहेगा अर्थात् झंडा देश की आन-बान-शान कुचल दी जाएगी? पं नेहरू ने संसद के माध्यम से देश की जनता से वायदा किया था कि समय के साथ-साथ अस्थायी तात्कालिक अनुच्छेद-370 समाप्त हो जाएगी और जम्मू-कश्मीर अन्य प्रांतों के समान भारत का अटूट अंग होगा। कांग्रेस जनता से किए वायदे से मुकरकर पं. जवाहरलाल नेहरू की पीठ में छुरा घोंप रही है तथा जनता से धोखा कर रही है। प्रश्न खड़ा होता है कि सन् 1952 से पहले महात्मा गांधी, सन् 1900 से पूर्व विवेकानंद, 1600 से पूर्व छठी पातशाही श्री हरगोविंद राय, 2000 वर्षों से पूर्व जगत गुरू आदि शंकराचार्य कश्मीर आए तब जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग था और धारा-370 नहीं थी। अब इस खाई, पुल या दीवार की क्या जरूरत है?
देश के अन्य सभी प्रांतों में जब इस्लाम मतावलंबी अनुच्छेद-370 के बिना हिन्दुस्तान में रह सकते हैं तो यहां के नेताओं व जनता को क्या तकलीफ है ? परंतु पंथनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण का खेल खेलने वाली, कुर्सी की खातिर देश की एकता व अखंडता का सौदा करनेवाली पार्टियां व नेता इस अलगाववादी अनुच्छेद-370 को पक्का बनाकर अपने नेताओं को संसद, न्यायपालिका व जनता को अपमानित करने का दु:साहस कर रहे हैं। कश्मीर में अलगाववादियों का चरित्र कैसा अमानवीय हो गया है कि अब वे बच्चों से पत्थर फेंकवा कर, उन्हें मरवाकर अपनी गलत बात को मनवाने की कोशिश कर रहे हैं। आज भारत की जनता को काश्मीर के बारे वास्तविकता का ज्ञान ही नहीं है इसलिये एक राष्ट्रभक्त होने के नाते मेरा यह कर्तव्य होजाता है कि देश के नागरिकों को जितना संभव हो सके उतनी जानकारी दी जाये। 1953 से पूर्व की स्थिति के नारे के खिलाफ प्रदेश की जनता में भयानक रोष पनप रहा है। 1953 से पूर्व की स्थिति का अर्थ पुन: भारत विभाजन की ओर पहला मुर्खतापूर्ण कदम होगा। कश्मीर घाटी में भी स्थानीय मुस्लिम इस मांग का विरोध कर रहे हैं। जम्मू व करगिल का मुसलमान भी हिंदुस्तान जिंदाबाद बुलंद कर रहा है। वह आजादी याने विभाजन के विरुद्ध है।
आज आवश्यकता है कि पूरा देश एक स्वर में 1953 से पूर्व की स्थिति का विरोध करे क्योंकि जम्मूकाश्मीर भारत का है और अब हम भारत के स्वर्ग को कतई नहीं छीनने देंगे।

खतरनाक हो सकते हैं होली के रंग
केंसर के रसायन हैं रंगों में

---- सुरेश हिन्दुस्तानी -----
इन्द्रधनुषी कल्पनाओं के रंग बिखेरने वाले होली के रंग खतरनाक होते जा रहे हैं। इनके उपयोग से जहां एक ओर केंसर जैसी खतरनाक बीमारी होने का खतरा उत्पन्न हो रहा है, वहीं संवेदनशील त्वचा वाले व्यक्ति रंगीन रसायन के चंगुल में आकर त्वचा की गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकते हैं।
रसायन युक्त रंगों का प्रयोग करना एक प्रकार के जहर का प्रयोग करना है। वर्तमान में होली के रंगों में रासायनिक रंगों का खतरनाक पावडर मिलाकर बेचा जा रहा है, जो सेहत के लिये अत्यन्त हानिकारक तो है ही साथ ही यह पर्यावरणीय संतुलन के लिये भी गंभीर स्थितियां पैदा कर रहा है। इन रंगों में टाक्सिक और अल्यूमीनियम ब्रोमाइड जैसे रसायन मिले होते हैं, जो केंसर जैसी गंभीर बीमारी के जन्मदाता हैं। साथ ही त्वचा, आंख एवं कान को प्रभावित करने के साथ साथ अन्य बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। हालांकि रंगों का मिश्रण पूर्व में भी लोगों के लिये खतरनाक साबित हो चुका है, पर लगता है कि रंगों के व्यापारी ज्यादा लालच के चक्कर में खतरनाक रासायनिक मिश्रण तैयार करके मानवीय जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
सावधानी जरूरी
इस बार की होली में रसायन युक्त रंगों के उपयोग से बचना चाहिये और मानवीय जीवन तथा पर्यावरण के प्रति उदार रवैया अपनाकर होली का आनंद लेना है तो हमें पर्यावरणीय वातावरण से दोस्ताना रवैया अपनाकर होली मनाना चाहिए। नहीं तो यह मिश्रण त्वचा पर खतरनाक प्रतिक्रिया करके हमारे सुखद जीवन में भंग मिला सकता है।
सोडा और रेत का प्रयोग
होली की पिचकारियों में जो रंग भरा जा रहा है उसमें खाने का सोडा और रेत की मात्रा भी पाई गई है। ये दोनों ही त्वचा पर रगडऩे पर जबरदस्त प्रतिक्रिया करता है। यहां तक कि त्वचा से खून तक निकल आता है। और असहनीय जलन पैदा कर देता है। उसी प्रकार गुलाल में रेत के कण और कांच के महीन टुकड़े मिला दिए जाते हैं। आजकल ऐसा रासायनिक गुलाल बाजार में बहुच बेचा जा रहा है।
नाम न लिखने की शर्त पर एक रंग व्यापारी ने बताया कि आजकल असली रंग तो हैं नहीं, हम तो रासायनिक मिश्रणों से रंग बनाते हैं। यहां तक कि रंग में नमक, वाशिंग पावउडर और कांच के टुकड़े भी मिलाए जाते हैं जो शरीर की त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं।
वर्जन
अब होली में पहले जैसी मस्ती नहीं रही। और शालीनता का व्यवहार तो दिखता ही नहीं है। होली में फूहड़ता का समावेश हो गया है। जो त्यौहार की वास्तविकता को धूमिल कर रहे हैं।

फिर राजनीतिक भंवर में पाकिस्तान

सुरेश हिंदुस्तानी पाकिस्तान के बनने के पश्चात प्रारंभ से पैदा हुई उसकी राजनीतिक दुश्वारियां अभी तक पीछा नहीं छोड़ रही हैं। सत्ता के संघर्ष के...