बन्द होना चाहिए झूंठ पर आधारित राजनीति
सुरेश हिन्दुस्तानी
देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल रही हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपने आपको आम जनता का हितैषी सिद्ध करने का प्रचार कर रही हैं। कहने का तात्पर्य है राजनीति में जो सुना जाता है वह होता नहीं है। परदे पर कुछ और दिखाने का प्रयास करते हैं, वास्तविकता कुछ और होती है। वर्तमान में राजनीतिक दल धरातल पर बाहुबल और धनबल के सहारे चुनाव जीतने का प्रयत्न करते हैं। जबकि यह सब दिखाई नहीं देता। लेकिन आम जनता को यह मालूम है कि वास्तविकता क्या है। सारे चुनावों की छिपी हुई हकीकत यही है कि चुनाव में पैसा पानी की तरह प्रवाहित किया जाता है? जो लोग पैसे की भाषा नहीं समझते उन्हें समझाने के दूसरे तरीके अपनाए जाते हैं, यानी बाहुबल का सहारा लिया जाता है। हालांकि इस सत्य को राजनेता इतनी सफाई से करते हैं कि कोई भी संस्था इसे गलत सिद्ध नहीं कर सकती?
वर्तमान में एक नई प्रकार की राजनीति का उदय हुआ है, उसके अंतर्गत अपने दल की कार्यप्रणाली का या कहा जाए कागुजारियों का बखान कम, दूसरे दलों की छीछालेदर करना ज्यादा ही देखने में आ रहा है। इस प्रकार का खेल कांगे्रस में कुछ ज्यादा ही चल रहा है। कारण साफ है कि कांगे्रस भ्रष्टाचार के बारे में ज्यादा बोल नहीं सकती। क्योंकि कांगे्रस की सरकार में मंत्रियों और कांगे्रसी नेताओं ने जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के कारनामे किए, उससे देश को करोड़ों का नुकसान हुआ। कांगे्रस के नेताओं ने भ्रष्टाचार के नाम पर जितनी कमाई की है, वह करोड़ों अरबों में है। आज देश पर जो आर्थिक बोझ आया है, उसके पीछे के कारणों में यह भ्रष्टाचार एक है।
देश में जैसे जैसे विदेशी संस्कार आ रहे हैं, वैसे ही राजनीति में भी कुसंस्कार जन्म ले रहे हैं। आजकल तो झूंठ बोलने में माहिर व्यक्ति को राष्ट्रीय स्तर का राजनेता माना जाता है। कांगे्रस के राहुल गांधी को ही ले लीजिए, राहुल ने स्पष्ट शब्दों में कहा था, कि मुझे देश के खुफिया विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि भारत के मुसलमानों से पाकिस्तान के आतंकवादी बात कर रहे हैं। यहां पर यह सवाल उठता है कि विदेश विभाग तो केन्द्र सरकार के पास है, फिर इसमें भाजपा की नाकामी की बात कहां से आ गई। इसका मतलब यही हुआ कि केन्द्र सरकार अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर पा रही है। वास्तव में वर्तमान की राजनीति टोपी पहनाने की है, आम जनता को कौन टोपी पहनाता है? यह देखना होगा। वैसे इस काम में कांगे्रस बहुत आगे है, कांगे्रस ने हमेशा ही ऐसी राजनीति की है कि उसकी कमजोरी से आम जनता का ध्यान हट जाए। राहुल गांधी ने जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया है, वह केवल आम जनता का ध्यान हटाने की कोशिश है।
वर्तमान में भारत की राजनीति में प्रतिद्वंद छिड़ा हुआ है। राजनीति में जिस प्रकार का वाद प्रतिवाद चल रहा है वह या तो मूर्ख बनने की प्रक्रिया का हिस्सा है या फिर मूर्ख बनाने की। अब आज के हालात में कौन मूर्ख बनता है और कौन बनाता है, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। जैसे ही समय की सीमा पूरी हो जाएगी, इसके पीछे का अर्थ सामने आता चला जाएगा।
आज हमारे देश की राजनीति में नेताओं के कई रूप देखने को मिल जाते हैं, यानि जैसी स्थिति होती है नेता लोग अपने को वैसा ही प्रचारित करने लग जाते हैं। इसको और व्याख्या करके कहा जाये तो तर्क संगत ही होगा कि हमारे नेता बहुरूपिया बन जाते हैं और भारत देश की भोली भाली जनता उनके इस नकली रूप को देखकर भ्रमित हो जाती है। देश भर में सारे नेता इस होड़ में आगे दिखने का प्रयास कर रहे हैं कि हम ही जनता के असली हितैषी हैं। नेताओं का यह रूप हमारे देश को किस दिशा में ले जाएगा या ले जारहा है, पता नहीं। पर यह सत्य है कि यह खेल बहुत ही खतरनाक है। देश के भविष्य के साथ एक प्रकार का अनहोना अपराध है?
भारत की राजनीति में आज ऐसे नेता उदय हो चुके हैं। बार बार रूप बदलना नेताओं की फितरत बन गया है। भारत की जनता के समक्ष ऐसे हालात बन गए हैं कि वह सही और गलत की पहचान भी नहीं कर पा रहे कि कौन है असली और कौन है नकली? यहाँ यह बात भी कहना जरूरी है कि यह कोई राजनीतिक बात नहीं है, और नहीं हम किसी का समर्थन या विरोध कर रहे हैं, बल्कि आज जो हालात हैं उसे जस का तस रखने का साहस कर रहे हैं। अभी हाल ही राहुल गांधी ने ताबड़तोड़ सभाएं करके कांगे्रस के पक्ष में माहौल गरमाने की कोशिश की है, लेकिन उनके बोलने से साफ लगता है कि वह बिना किसी पूर्व तैयारी के ही बोलना शुरू कर देते हैं। जब तैयारी नहीं होती तब झूंठ का भी सहारा लेना पड़ता है, राहुल ने भी ऐसा ही झूंठ बोला? राहुल के भाषण देने के मात्र दो दिन बाद यह साफ हो गया था कि राहुल ने झूंठ बोला, क्योंकि सरकार के गृह मंत्रालय ने राहुल के बयान से पल्ला झाड़ लिया है। ऐसे में सवाल यह भी आता है कि क्या सरकार राहुल के विरोध में कार्यवाही करने का साहस जुटा पाएगी। वास्तव में तो ऐसा नहीं लगता, सरकार कार्यवाही नहीं कर सकती। अगर ऐसे बयान राहुल के अलावा किसी अन्य दल का नेता देता तो सरकार और कांगे्रस उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाती।
हमारे राजनेता कौन कौन से खेल खेलते हैं यह आज सबको दिखाई देने लगा है। अपनी कुर्सी बचाने की खातिर आज के नेता अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने का कारनामा करते हैं। कुर्सी प्राप्त करते ही नेता लोग पैसा एकत्रित करने में लग जाते हैं। आज देश में कई नेता ऐसे हैं जिनका व्यवसाय कुछ नहीं होने पर भी धनवान बन गए हैं, वास्तव में आज की राजनीति सेवा का माध्यम न होकर एक व्यवसाय बन गई है। राजनीति का जिस प्रकार से व्यवसायीकरण हुआ है उसी के परिणाम स्वरूप हमारा देश रसातल की ओर जा रहा है और उसका खामियाजा देश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। वर्तमान में सोनिया और राहुल के नाम से कोई व्यवसाय देश में नहीं है, फिर भी इनके पास पैसा निर्बाध गति से बढ़ता जा रहा है। क्या कोई बता सकता है कि यह पैसा कहां से आया है?
आज की राजनीति में नेताओं द्वारा जिस प्रकार की राजनीति की जाती है, वह केवल भारत के एक वर्ग विशेष को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। इस वर्ग में उच्च स्तर का जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या बहुत ही कम है, लेकिन अपने संप्रदाय के प्रति बहुत कट्टर होते हैं। जो नेता इनके संप्रदाय के बारे में अच्छी बात बोलता है, उस नेता को ये लोग अपना हमदर्द मानने की भूल कर बैठते हैं। बस यही कारण है कि नेता लोग इस समुदाय को वोट बैंक मानकर चाल चलता है, लेकिन आज का यह समुदाय भी असलियत जान चुका है, भावनाएं भड़काने का यह खेल अब समाप्त होना चाहिए।
सुरेश हिन्दुस्तानी
देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल रही हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपने आपको आम जनता का हितैषी सिद्ध करने का प्रचार कर रही हैं। कहने का तात्पर्य है राजनीति में जो सुना जाता है वह होता नहीं है। परदे पर कुछ और दिखाने का प्रयास करते हैं, वास्तविकता कुछ और होती है। वर्तमान में राजनीतिक दल धरातल पर बाहुबल और धनबल के सहारे चुनाव जीतने का प्रयत्न करते हैं। जबकि यह सब दिखाई नहीं देता। लेकिन आम जनता को यह मालूम है कि वास्तविकता क्या है। सारे चुनावों की छिपी हुई हकीकत यही है कि चुनाव में पैसा पानी की तरह प्रवाहित किया जाता है? जो लोग पैसे की भाषा नहीं समझते उन्हें समझाने के दूसरे तरीके अपनाए जाते हैं, यानी बाहुबल का सहारा लिया जाता है। हालांकि इस सत्य को राजनेता इतनी सफाई से करते हैं कि कोई भी संस्था इसे गलत सिद्ध नहीं कर सकती?
वर्तमान में एक नई प्रकार की राजनीति का उदय हुआ है, उसके अंतर्गत अपने दल की कार्यप्रणाली का या कहा जाए कागुजारियों का बखान कम, दूसरे दलों की छीछालेदर करना ज्यादा ही देखने में आ रहा है। इस प्रकार का खेल कांगे्रस में कुछ ज्यादा ही चल रहा है। कारण साफ है कि कांगे्रस भ्रष्टाचार के बारे में ज्यादा बोल नहीं सकती। क्योंकि कांगे्रस की सरकार में मंत्रियों और कांगे्रसी नेताओं ने जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के कारनामे किए, उससे देश को करोड़ों का नुकसान हुआ। कांगे्रस के नेताओं ने भ्रष्टाचार के नाम पर जितनी कमाई की है, वह करोड़ों अरबों में है। आज देश पर जो आर्थिक बोझ आया है, उसके पीछे के कारणों में यह भ्रष्टाचार एक है।
देश में जैसे जैसे विदेशी संस्कार आ रहे हैं, वैसे ही राजनीति में भी कुसंस्कार जन्म ले रहे हैं। आजकल तो झूंठ बोलने में माहिर व्यक्ति को राष्ट्रीय स्तर का राजनेता माना जाता है। कांगे्रस के राहुल गांधी को ही ले लीजिए, राहुल ने स्पष्ट शब्दों में कहा था, कि मुझे देश के खुफिया विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि भारत के मुसलमानों से पाकिस्तान के आतंकवादी बात कर रहे हैं। यहां पर यह सवाल उठता है कि विदेश विभाग तो केन्द्र सरकार के पास है, फिर इसमें भाजपा की नाकामी की बात कहां से आ गई। इसका मतलब यही हुआ कि केन्द्र सरकार अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर पा रही है। वास्तव में वर्तमान की राजनीति टोपी पहनाने की है, आम जनता को कौन टोपी पहनाता है? यह देखना होगा। वैसे इस काम में कांगे्रस बहुत आगे है, कांगे्रस ने हमेशा ही ऐसी राजनीति की है कि उसकी कमजोरी से आम जनता का ध्यान हट जाए। राहुल गांधी ने जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया है, वह केवल आम जनता का ध्यान हटाने की कोशिश है।
वर्तमान में भारत की राजनीति में प्रतिद्वंद छिड़ा हुआ है। राजनीति में जिस प्रकार का वाद प्रतिवाद चल रहा है वह या तो मूर्ख बनने की प्रक्रिया का हिस्सा है या फिर मूर्ख बनाने की। अब आज के हालात में कौन मूर्ख बनता है और कौन बनाता है, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। जैसे ही समय की सीमा पूरी हो जाएगी, इसके पीछे का अर्थ सामने आता चला जाएगा।
आज हमारे देश की राजनीति में नेताओं के कई रूप देखने को मिल जाते हैं, यानि जैसी स्थिति होती है नेता लोग अपने को वैसा ही प्रचारित करने लग जाते हैं। इसको और व्याख्या करके कहा जाये तो तर्क संगत ही होगा कि हमारे नेता बहुरूपिया बन जाते हैं और भारत देश की भोली भाली जनता उनके इस नकली रूप को देखकर भ्रमित हो जाती है। देश भर में सारे नेता इस होड़ में आगे दिखने का प्रयास कर रहे हैं कि हम ही जनता के असली हितैषी हैं। नेताओं का यह रूप हमारे देश को किस दिशा में ले जाएगा या ले जारहा है, पता नहीं। पर यह सत्य है कि यह खेल बहुत ही खतरनाक है। देश के भविष्य के साथ एक प्रकार का अनहोना अपराध है?
भारत की राजनीति में आज ऐसे नेता उदय हो चुके हैं। बार बार रूप बदलना नेताओं की फितरत बन गया है। भारत की जनता के समक्ष ऐसे हालात बन गए हैं कि वह सही और गलत की पहचान भी नहीं कर पा रहे कि कौन है असली और कौन है नकली? यहाँ यह बात भी कहना जरूरी है कि यह कोई राजनीतिक बात नहीं है, और नहीं हम किसी का समर्थन या विरोध कर रहे हैं, बल्कि आज जो हालात हैं उसे जस का तस रखने का साहस कर रहे हैं। अभी हाल ही राहुल गांधी ने ताबड़तोड़ सभाएं करके कांगे्रस के पक्ष में माहौल गरमाने की कोशिश की है, लेकिन उनके बोलने से साफ लगता है कि वह बिना किसी पूर्व तैयारी के ही बोलना शुरू कर देते हैं। जब तैयारी नहीं होती तब झूंठ का भी सहारा लेना पड़ता है, राहुल ने भी ऐसा ही झूंठ बोला? राहुल के भाषण देने के मात्र दो दिन बाद यह साफ हो गया था कि राहुल ने झूंठ बोला, क्योंकि सरकार के गृह मंत्रालय ने राहुल के बयान से पल्ला झाड़ लिया है। ऐसे में सवाल यह भी आता है कि क्या सरकार राहुल के विरोध में कार्यवाही करने का साहस जुटा पाएगी। वास्तव में तो ऐसा नहीं लगता, सरकार कार्यवाही नहीं कर सकती। अगर ऐसे बयान राहुल के अलावा किसी अन्य दल का नेता देता तो सरकार और कांगे्रस उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाती।
हमारे राजनेता कौन कौन से खेल खेलते हैं यह आज सबको दिखाई देने लगा है। अपनी कुर्सी बचाने की खातिर आज के नेता अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने का कारनामा करते हैं। कुर्सी प्राप्त करते ही नेता लोग पैसा एकत्रित करने में लग जाते हैं। आज देश में कई नेता ऐसे हैं जिनका व्यवसाय कुछ नहीं होने पर भी धनवान बन गए हैं, वास्तव में आज की राजनीति सेवा का माध्यम न होकर एक व्यवसाय बन गई है। राजनीति का जिस प्रकार से व्यवसायीकरण हुआ है उसी के परिणाम स्वरूप हमारा देश रसातल की ओर जा रहा है और उसका खामियाजा देश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। वर्तमान में सोनिया और राहुल के नाम से कोई व्यवसाय देश में नहीं है, फिर भी इनके पास पैसा निर्बाध गति से बढ़ता जा रहा है। क्या कोई बता सकता है कि यह पैसा कहां से आया है?
आज की राजनीति में नेताओं द्वारा जिस प्रकार की राजनीति की जाती है, वह केवल भारत के एक वर्ग विशेष को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। इस वर्ग में उच्च स्तर का जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या बहुत ही कम है, लेकिन अपने संप्रदाय के प्रति बहुत कट्टर होते हैं। जो नेता इनके संप्रदाय के बारे में अच्छी बात बोलता है, उस नेता को ये लोग अपना हमदर्द मानने की भूल कर बैठते हैं। बस यही कारण है कि नेता लोग इस समुदाय को वोट बैंक मानकर चाल चलता है, लेकिन आज का यह समुदाय भी असलियत जान चुका है, भावनाएं भड़काने का यह खेल अब समाप्त होना चाहिए।