Wednesday, February 14, 2024

पाश्चात्य दिशा की ओर बढ़ता भारत

सुरेश हिन्दुस्थानी
देश में यूं तो कई प्रकार के भारत विरोधी षड्यंत्र हो रहे हैं, लेकिन कुछ षड्यंत्र ऐसे भी हैं, जो सीधे तौर पर हमारे स्वर्णिम अतीत पर प्रहार कर रहे हैं यानी सीधे शब्दों में कहा जाए तो भारत की संस्कृति पर कुठाराघात कर रहे हैं। यह बात सही है कि विश्व के सभी देश अपनी स्वयं की पहचान को संरक्षित और संवर्धित करते हैं, लेकिन हमारे देश भारत में जैसा विदेशियों ने कह दिया, वैसा ही हम स्वीकार करने की मुद्रा में दिखाई देते हैं। यहां प्रश्न यह आता है कि क्या हमारा स्वत्व नहीं है। क्या हमारे देश की पहचान नहीं है? अगर है तो हम उसको बचाने के लिए कितनी ईमानदारी से प्रयास कर रहे हैं? नहीं कर रहे तो इसे किसकी कमी कहा जाएगा। भारत की सांस्कृतिक विशेषताओं के बारे में कहा जाए तो कई प्रमुख विशेषताएं हैं, जो भारत की एकता को स्थापित करती हैं। इतना ही नहीं भारत प्राकृतिक रुप से अत्यंत ही खूबसूरत देश है। पुरातन काल में भारत की सांस्कृतिक पंरपराओं ने पूरे विश्व को ज्ञान का दर्शन कराया था, लेकिन आज यह वर्जनाएं टूट रही हैं। हमने अपने आपको भुला दिया है, हम विदेश की जकड़न में फंसते जा रहे हैं। हमारा समाज सर्वकल्याण की भावना जगाने वाली संस्कृति से पीछा छुड़ा रहा है। जब हम ऐसा करेंगे तो हम कहां जाएंगे और हम आने वाली पीढ़ी को कौन सा भारत देकर जाएंगे। यह गंभीरता पूर्वक विचार करने का विषय है।
यहां विचार करने वाली बात यह भी है कि जो समूह भारत की संस्कृति पर कुठाराघात करने का प्रयास कर रहा है, उनको ऐसा करने के लिए प्रेरित कौन कर रहा है? कभी-कभी तो ऐसा भी सुनने में आता है कि विश्व में जितने भी भारत के दुश्मन देश हैं, उन्होंने अपने लिए जयचंदों की तलाश करली है और उन्ही जयचंदों के माध्यम से वह भारत को तार-तार करने की मुद्रा में हैं। कहा यह भी जा रहा है कि इन जयचंदों को ऐसा करने के लिए बहुत बड़ी धनराशि भी प्राप्त हो रही है। पहले आतंकी घटनाओं के रुप में हमारे देश को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा था, लेकिन अब ऐसा करने वालों ने भारत को कमजोर करने का तरीका बदल दिया है। अब बौद्धिक आतंकवाद के माध्यम से भारत के वातावरण में जहर पैदा करने का काम किया जा रहा है।
अभी कुछ दिनों पहले देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था उच्चतम न्यायालय ने एक अप्रवासी ईसाई जोसेफ शाइन की याचिका पर धारा 377 को समाप्त कर दिया। हो सकता है कि यह धारा हटाने से देश के मात्र कुछ ही लोगों को अच्छा लगा होगा, लेकिन इसे सभी के लिए हटाया गया है। यह बात सही है कि इस धारा को हटाने के लिए सम्पूर्ण भारतीय समाज की मांग नहीं थी। समलैंगिकता पश्चिमी जगत से आयातित शब्द है, भारत में इसकी आवश्यकता है ही नहीं, लेकिन जो भारत को कमजोर करने वाली ताकतें हैं, वह इसी प्रकार का भाव का प्रवाह देश में पैदा करना चाहती हैं।
भारत में सबसे बड़ी विसंगति यही है कि इस प्रकार के निर्णय के बाद भी भारतीय समाज चुपचाप अपनी संस्कृति पर हुए हमले को सहन कर रहा है। ऐसा निर्णय किसी अन्य समाज के बारे में हुआ होता तो हो सकता था कि ऐसा निर्णय बदल भी सकता था। जो काम पहले धारावाहिक निर्माता एकता कपूर के शो दिखा रहे थे, आज देश की सर्वोच्च संस्था ने भी दिखा दिया है। हम एक बार फिर कह रहे हैं कि ऐसा प्रश्न उठाकर हम सर्वोच्च न्यायालय की मंशा को गलत नहीं ठहरा रहे हैं, लेकिन जब समाज की ओर से कोई आवाज उठती है तो उसे विधायिका और न्यायपालिका तक पहुंचाने का कार्य भी होना चाहिए। क्या जनमानस में उठ रहा यह सवाल उचित नहीं है कि धारा 497 की समाप्ति के निर्णय से देश में अवैध व्यभिचार करने की खुली मान्यता मिल गई है। सवाल यह भी है कि ऐसे वातावरण में हम भविष्य की पीढ़ी के लिए कैसे भारत का निर्माण कर रहे हैं। ऐसी स्थिति के बाद हमारे भारत का सांस्कृतिक स्वरुप विदेशी विकृति के रुप में उपस्थित हो जाएगा। जो भारत के लोगों को शरीर से भारतीय, चरित्र से अंग्रेज और आत्मा से अमेरिकन बनाने का काम करेगा। पहले से ही मैकाले शिक्षा पद्धति अंदर से चरित्रहीनता भर ही रही थी। अब चरित्रहीनता बढ़ाने के सारे रास्ते खुल गए हैं। 
भारत में दोनों धाराएं 377 और 497 को खत्म करना भारत को पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ाता है जो कामवासना, चरित्रहीनता, वेश्यावृति और व्याभिचार को बढ़ावा देकर भारतीय सभ्यता को खत्म करने का षड्यंत्र है। भारतीय सभ्यता में पर पुरूष गमन, पर स्त्री गमन को पाप और अमान्य माना गया है तो इस सभ्यता के एक पुरुष एक पत्नी के आदर्श को विखंडित करने के प्रयास कानूनपालिका कैसे चल रही है?
कामवासना, वेश्यावृति और व्याभिचार को बढ़ावा देकर भारत की संस्कृति, मर्यादा, संयम, विश्वास, आदर्श को रुढ़िवाद के नाम पर, आधुनिक सोच के नाम पर भारतीयता से दूर करके पश्चिमी सभ्यता पर ले जाया जा रहा है।
27 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ी चतुराई और सुनियोजित ढंग से एक के बाद एक निर्णय दिए। जिसमें पहला फैसला था धारा 497 को खत्म करना अर्थात अब विवाह के बाद पर पुरुष गमन, पर स्त्री गमन साधारण भाषा मे कहें तो पति के अलावा गैर मर्दों से शारीरिक सम्बन्ध बनाना कानूनन अपराध नहीं है। धारा 377 को खत्म कर वासना के लिए समलैंगिकता जैसी विकृति को स्वीकृति इसी महीने मिली और अब व्यभिचार को भी लीगल बना दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 के बाद अब धारा 497 पर फैसला सुनाया गया है। इस धारा के अंतर्गत व्यभिचार करते हुए कोई व्यक्ति पाया जाता तो दण्डित किया जा सकता था। इस धारा को हटाने के लिए हमारे देश में एक विशेष गुट कार्य कर रहा है। यह गुट देशवासियों को पशुतुल्य आचरण करने की छूट देना चाहता है। विडंबना यह है कि इस गिरोह के सुनियोजित षड्यंत्र को जानते हुए भी हम एकजुट होकर इनका विरोध नहीं कर पा रहे हैं। पिछले 15-20 वर्षों में इस गिरोह की हरकतें अनेक प्रकार से सामने आ रही हैं। जैसे मीडिया के माध्यम से बढ़ी अश्लीलता, लिव-इन-रिलेशनशिप, समलैंगिकता, पिंजरातोड़, विवाहेत्तर सम्बन्ध, विवाहपूर्व सम्बन्ध, विद्यालयों में सेक्स एजुकेशन।  जिसके परिणाम निर्भया बलात्कार, छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाओं से बलात्कार, बच्चों का यौन शोषण, सनकी आशिक के नाम पर लड़कियों पर हमला, एसिड अटैक, युवाओं में बढ़ते तलाक, कोर्ट-केस आदि के रूप में सामने आ रहे हैं। ऐसे समाज में परिवार समाप्त हो जाएंगे। सभी पशुतुल्य हो जाएंगे। समाज में विघटन हो जाएगा। यही विदेशी ताकतें चाहती हैं।
हमारे देश की संस्कृति के प्राण ही संयम और सदाचार रूपी आचरण में हैं। समलैंगिकता और स्वच्छंद व्यभिचार पर खुली छूट इसी सदाचार रूपी आचरण के विपरीत व्यवहार हैं। इसका परिणाम न केवल सामाजिक है अपितु आध्यात्मिक भी है। आत्म संयम धर्म का प्रदाता ईश्वर है। वेद इसी सन्देश को बड़े भव्य रूप से समझाते हैं।
पाश्चात्य भोगवादी सभ्यता के दुष्प्रभाव से देश की संस्कृति का ह्रास होता जा रहा है। विदेशी चैनल, चल-चित्र, अश्लील साहित्य आदि प्रचार माध्यमों के द्वारा युवक-युवतियों को गुमराह किया जा रहा है। विभिन्न सामयिकों और समाचार-पत्रों में भी तथाकथित पाश्चात्य मनोविज्ञान से प्रभावित मनोचिकित्सक और सेक्सोलॉजिस्ट युवा छात्र-छात्राओं को चरित्र, संयम और नैतिकता से भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं। ऊपर ये ऐसा कानून बन जाए कि व्यभिचार करना कानून अपराध नहीं है तो फिर भगवान ही रक्षा करें। भारतवासियों को एकजुट होकर भारतीय संस्कृति को खत्म करने वाले कानूनों का विरोध करना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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